अब हम हमेशा साथ रहेंगे’ लालू के ऑफर पर बोले नीतीश, क्या गलती से दो बार इधर-उधर हो गए?​

अब हम हमेशा साथ रहेंगे’ लालू के ऑफर पर बोले नीतीश, क्या गलती से दो बार इधर-उधर हो गए?​

भारतीय राजनीति में बिहार की सियासत का हमेशा एक अलग और खास महत्व रहा है। यहां के नेताओं के बीच गठजोड़, तोड़फोड़, और फिर से मेल-मिलाप एक रोचक राजनीतिक गाथा रचते हैं। हाल ही में राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के प्रमुख लालू प्रसाद यादव और जनता दल (यूनाइटेड) के नेता नीतीश कुमार के बीच एक बार फिर दोस्ती की मिसाल देखने को मिली। लालू यादव के “अब हम हमेशा साथ रहेंगे” वाले बयान पर नीतीश कुमार ने भी सहमति जताई।

लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या यह वादा इस बार टिकाऊ होगा, या इतिहास खुद को दोहराएगा?

लालू-नीतीश की सियासी कहानी: गठबंधन और अलगाव

लालू और नीतीश की सियासत की जड़ें 1970 के दशक के जयप्रकाश नारायण के आंदोलन से जुड़ी हैं। दोनों नेता तब एक साथ थे, लेकिन समय के साथ उनकी राजनीतिक राहें अलग हो गईं। उनके रिश्ते की कहानी में कई मोड़ आए, जिनका प्रभाव न केवल बिहार बल्कि राष्ट्रीय राजनीति पर भी पड़ा।

शुरुआती दोस्ती और अलगाव

  1. 1990 का दशक:
    लालू प्रसाद यादव ने 1990 में बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में सत्ता संभाली। उस समय, नीतीश कुमार उनके सहयोगी थे। लेकिन लालू की राजनीति में परिवारवाद और भ्रष्टाचार के आरोपों के चलते नीतीश ने दूरी बना ली।

  2. 2000 का दौर:
    नीतीश ने भाजपा के साथ गठजोड़ किया और 2005 में बिहार के मुख्यमंत्री बने। यह लालू-नीतीश के रिश्ते में एक निर्णायक मोड़ था, क्योंकि यह भाजपा के साथ नीतीश की सियासी यात्रा का आरंभ था।

पुनर्मिलन और फिर अलगाव

  1. 2015 का महागठबंधन:
    भाजपा को रोकने के लिए 2015 में लालू और नीतीश ने महागठबंधन बनाया। इस गठबंधन ने बिहार में भारी जीत हासिल की। लेकिन यह साझेदारी ज्यादा समय तक नहीं टिक पाई।

  2. 2017 में अलगाव:
    नीतीश ने भ्रष्टाचार के आरोपों को लेकर महागठबंधन से अलग होकर भाजपा के साथ फिर से गठजोड़ कर लिया।

वर्तमान स्थिति

2022 में नीतीश ने भाजपा से नाता तोड़कर एक बार फिर लालू यादव और विपक्षी दलों के साथ हाथ मिला लिया। यह सियासी कदम भाजपा के खिलाफ विपक्ष को एकजुट करने की दिशा में बड़ा कदम माना गया।


लालू यादव का “हमेशा साथ रहने” का वादा

लालू प्रसाद यादव ने हाल ही में एक सार्वजनिक मंच से घोषणा की, “अब हम हमेशा साथ रहेंगे।” इस बयान को उनके और नीतीश के रिश्ते की मजबूती के तौर पर देखा जा रहा है। लालू ने इस बार यह भी संकेत दिया कि उन्होंने पिछली गलतियों से सबक लिया है और अब वह किसी भी हालत में अपने सहयोगी को खोना नहीं चाहते।

नीतीश कुमार का जवाब

नीतीश कुमार ने लालू के इस बयान पर सकारात्मक प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा, “हां, अब हम हमेशा साथ रहेंगे।” लेकिन क्या यह प्रतिक्रिया सिर्फ राजनीतिक बयानबाजी है, या इसमें सच्चाई है?


दो बार ‘इधर-उधर’ होने का इतिहास

नीतीश कुमार पर अक्सर यह आरोप लगता है कि उन्होंने अपनी राजनीतिक लाभ के लिए बार-बार पाला बदला है।

  1. भाजपा से गठजोड़:
    नीतीश ने 17 वर्षों तक भाजपा के साथ गठबंधन किया, लेकिन 2013 में नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री उम्मीदवार बनाए जाने के बाद वह अलग हो गए।

  2. महागठबंधन का दांव:
    2015 में महागठबंधन बनाकर उन्होंने भाजपा के खिलाफ जीत हासिल की, लेकिन दो साल बाद फिर से भाजपा के साथ मिलकर सरकार बनाई।

  3. फिर से लालू के साथ:
    2022 में भाजपा से अलग होकर एक बार फिर आरजेडी के साथ आ गए।

नीतीश के इन फैसलों ने उनके राजनीतिक चरित्र पर सवाल उठाए हैं, लेकिन इसे उनकी रणनीतिक सूझबूझ भी माना जाता है।


लालू और नीतीश: साथ रहने के कारण

1. भाजपा के खिलाफ मोर्चा

दोनों नेता भाजपा के बढ़ते राजनीतिक वर्चस्व को रोकने के लिए एकजुट हुए हैं। बिहार में भाजपा को सत्ता से दूर रखना उनका प्राथमिक उद्देश्य है।

2. सामाजिक समीकरण

लालू यादव यादव और मुस्लिम वोट बैंक के दम पर राजनीति करते हैं, जबकि नीतीश कुमार कुर्मी और अति पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के नेता माने जाते हैं। इन दोनों का गठजोड़ बिहार के सामाजिक समीकरणों में मजबूत पकड़ बनाता है।

3. विपक्षी एकता की जरूरत

राष्ट्रीय स्तर पर विपक्षी दलों को एकजुट करने के प्रयास में भी यह गठबंधन महत्वपूर्ण है। नीतीश को प्रधानमंत्री उम्मीदवार के रूप में प्रोजेक्ट करने की चर्चा भी इस समीकरण को मजबूती देती है।


क्या यह गठबंधन टिकाऊ होगा?

नीतीश कुमार और लालू यादव के गठबंधन का भविष्य कई कारकों पर निर्भर करेगा।

1. भाजपा का दबाव

भाजपा ने बिहार में अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए आक्रामक रणनीति अपनाई है। अगर भाजपा विपक्ष को तोड़ने में सफल होती है, तो यह गठबंधन खतरे में पड़ सकता है।

2. आंतरिक मतभेद

आरजेडी और जेडीयू के नेताओं के बीच मतभेद भी इस गठबंधन को कमजोर कर सकते हैं।

3. लालू-नीतीश की व्यक्तिगत रणनीति

दोनों नेताओं की अपनी-अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं हैं। अगर इनमें टकराव हुआ, तो गठबंधन टूट सकता है।


जनता की प्रतिक्रिया

बिहार की जनता इस गठबंधन को मिली-जुली प्रतिक्रिया दे रही है।

  • कुछ लोग इसे भाजपा के खिलाफ मजबूत विकल्प मानते हैं।
  • वहीं, कुछ इसे अवसरवादी राजनीति का उदाहरण मानते हैं।

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