हाल ही में चीन द्वारा पाकिस्तान के प्रति सार्वजनिक और स्पष्ट समर्थन एक बार फिर अंतरराष्ट्रीय राजनीति में चर्चा का विषय बन गया है। यह समर्थन न केवल दक्षिण एशियाई क्षेत्र की स्थिरता को प्रभावित कर सकता है, बल्कि भारत के लिए भी कूटनीतिक चुनौती खड़ी करता है।
चीन और पाकिस्तान के बीच “ऑल वेदर फ्रेंडशिप” (हर मौसम की दोस्ती) को लेकर लंबे समय से सहयोग चला आ रहा है। दोनों देशों के बीच रक्षा, व्यापार, तकनीक और ऊर्जा के क्षेत्र में गहरे संबंध हैं। अब जबकि वैश्विक राजनीति बहुध्रुवीय हो रही है और भारत अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी स्थिति मजबूत कर रहा है, चीन का यह कदम भारत को संतुलित करने की रणनीति का हिस्सा माना जा सकता है।
हालिया समर्थन की पृष्ठभूमि
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में चीन ने एक बार फिर पाकिस्तान के हितों की रक्षा करते हुए कुछ प्रस्तावों पर भारत के रुख का विरोध किया। इसके अलावा, चीन ने कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान के पक्ष को समर्थन देते हुए यह बयान भी दिया कि यह एक “ऐतिहासिक और विवादित क्षेत्र” है, जिसे दोनों पक्षों को शांति से हल करना चाहिए।
हाल ही में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ की बीजिंग यात्रा के दौरान दोनों देशों ने आर्थिक गलियारे (CPEC) की प्रगति की समीक्षा की और उसमें नई परियोजनाओं को जोड़ने का निर्णय लिया। चीन ने पाकिस्तान को 700 मिलियन डॉलर की अतिरिक्त सहायता देने का भी ऐलान किया, जिससे पाकिस्तान की डूबती अर्थव्यवस्था को कुछ राहत मिल सकती है।
भारत की चिंता
भारत की नजर में चीन-पाकिस्तान के बढ़ते संबंध न केवल रणनीतिक, बल्कि सुरक्षा के दृष्टिकोण से भी चिंता का विषय हैं। भारत पहले से ही चीन द्वारा पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (PoK) में CPEC के निर्माण का विरोध करता रहा है। यह परियोजना भारत की संप्रभुता का उल्लंघन मानी जाती है क्योंकि यह भारतीय क्षेत्र से होकर गुजरती है।
इसके अलावा, चीन द्वारा पाकिस्तान को सैन्य तकनीक, ड्रोन और मिसाइल सिस्टम प्रदान करना भारतीय सुरक्षा तंत्र के लिए गंभीर चुनौती बन सकता है।
विश्लेषण
चीन का पाकिस्तान को समर्थन देना सिर्फ द्विपक्षीय संबंधों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह अमेरिका और भारत के बढ़ते रणनीतिक संबंधों का एक जवाब भी हो सकता है। चीन नहीं चाहता कि भारत क्षेत्रीय नेता के रूप में उभरे और वह पाकिस्तान के जरिए संतुलन बनाने की कोशिश करता है।